पटना: देशभर में नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है. इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनआरसी को लेकर बड़ा बयान दिया है. नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में एनआरसी बिल्कुल लागू नहीं होगा. नीतीश का ये बयान अहम है क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी पूरे देश में एनआरसी लागू करने की वकालत कर रही है.
बता दें कि हाल ही में जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने कहा था कि नीतीश कुमार ने वादा किया था कि राज्य में एनआरसी लागू नहीं होगा. वहीं ममता बनर्जी ने भी कई मौकों पर नीतीश कुमार का जिक्र करते हुए कहा था कि वे राज्य में एनआरसी के पक्ष में नहीं हैं.
गौरतलब है कि 31 अगस्त को असम में एनआरसी की अंतिम सूची जारी की गई. एनआरसी में शामिल होने के लिए 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन दिया था. इनमें से 3,11,21,004 लोगों को शामिल किया गया है और 19,06,657 लोगों का नाम नहीं आया.
क्या है NRC
नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस एक दस्तावेज है जो इस बात की शिनाख्त करता है कि कौन देश का वास्तविक नागरिक है और कौन देश में अवैध रूप से रह रहा हैं. यह शिनाख्त पहली बार साल 1951 में पंडित नेहरू की सरकार द्वारा असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई को शांत करने के लिए की गई थी. बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए बंगाली हिंदू शरणार्थियों को असम में बसाए जाने के खिलाफ थे.
साल 1980 के दशक में वहां के कट्टर क्षेत्रीय समूहों द्वारा एनआरसी को अपडेट करने की लगातार मांग की जाती रही थी. असम आंदोलन को समाप्त करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें 1971 के बाद आने वाले लोगों को एनआरसी में शामिल न करने पर सहमति व्यक्त की गई थी.
अवैध प्रवासियों को राज्य से हटाने के लिए कांग्रेस की सरकार ने साल 2010 में एनआरसी को अपडेट करने की शुरुआत असम के दो जिलों से की. यह बारपेटा और कामरूप जिला था. हालांकि बारपेटा में हिंसक झड़प हुई और यह प्रक्रिया ठप हो गई. पहली बार सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और फिर 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इसके बाद साल 2015 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी का काम फिर से शुरू किया.